बाहर घमासान बारिश...
कमरे में उमस-सी है.
कहते हो खिडकियां खोल दो -
शायद तुम जानते नहीं
गरम कांच पर ठंडा पानी
कितनें जख्म दे जाता है!
कमरे में उमस-सी है.
कहते हो खिडकियां खोल दो -
शायद तुम जानते नहीं
गरम कांच पर ठंडा पानी
कितनें जख्म दे जाता है!
6 Comments:
sahi!
very well written!!!!!!
reminds me of jagjit singh's ghazal
Aankhon mein jal raha hai kyun,
Bujhta nahi dhuan,
Uthta to hai ghata sa,
Barastaa nahi dhuan..........
Aankhon se aansuon ke maraasim purane hain,
mehmaan yeh ghar mein aayein to chubhta nahi dhuan...........
अरे प्रग्या जी, अभी अभी वो ग़ज़ल सुन रही हूं..thank you so much for mentioning it! क्या कमाल के शब्द हैं!
आंखों के पोछने से लगा आंच का पता
यूं चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआ..
वाह! :) शायर पता हैं आप को?
Who else but Gulzar, from Marasim, if I am not wrong!
बिल्कुल सही फ़रमाया, सुमेधा! गुलज़ार जी की ही नज़्म है यह!
Very Nice!
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