Tuesday, February 27, 2007

सेन्स ऐन्ड सेन्सिबिलिटी

"अरे वाह रूपा, झुमके बडे अच्छे लग रहे हैंं.."
मेरा मित्रता प्रदर्शित करनेवाला सामान्य अभिप्राय.
कमरे में झाडू लगाते लगाते वह ठहर जाती है
झुमके उतार कर मेरे हाथ में रखती है..
"अच्छे लगें? लीजिये ना..अप पे बहुत जचेंगे."
मैं लज्जित होती हूं -
उसकी उदारता से भी और अपनी दखियानूसी से भीे,
जो मेरे पीछे 'एस्थेटिक सैन्स?' की सी कुछ बात फुसफुसाती है!

3 Comments:

Blogger HAREKRISHNAJI said...

क्या बा़त है

Sunday, March 18, 2007 3:18:00 PM  
Blogger HAREKRISHNAJI said...

गुढीपाडव्यानिमित्त सर्वांना नवे वर्ष सुखसमृद्धी व भरभराटीचे जावो.

Monday, March 19, 2007 7:26:00 PM  
Blogger Radhika said...

beautiful ! especially last two lines.

Thursday, April 05, 2007 6:07:00 PM  

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