मितवा,
अलीबाग़ याद है? कल मैंने ज़ैद को देखा! हट् पागल, सपने में नहीं - तुम्हें पता तो है - "ख्वाब अधूरी नींद की नाजायज़ औलाद होती है" :) सचमुच, ये यादें और वो आँसू - एक बार बहने शुरू हुए तो थमने का नाम नहीं लेतें! वरना कहाँ समुंदर-सी आँखोंवाला ज़ैद और कहाँ कलवाले उस चारासाज़ की शहदिया नज़र! बचपन की क़िताबोंवाली (रूसी कहानियाँ, शायद) सुंदरता मन पर कईं सालों तक राज करती रही. नीली आँखे, सुनहरे बाल, गोरे गालों पे टमाटर जैसा लाल रंग (पता है, संस्कृत में गाल को 'कपोल' कहते हैं. मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा ये शब्द!) ये शरीर की सुंदरता के आदर्श मान होते थे नं? मुझे नीली आँखे बहुत पसंद थी. खास कर उन गोरे बुढऊ बाबाओंकी, जिनके बाल सफेद हो गये हों. आईनस्टीनी स्टाइल से! ऐसी आँखे केवल प्रेम की बौछार करतीं हैं, नहीं?
पर कल से मुझे सारी आँखे एक-जैसी सुंदर लगनें लगीं हैं. नीलमणि आँखों का ज़ैद हर रंग की आँख से झाँक-झाँककर अपनी वहीं हँसी बिखेरता है, जो उसने अलीबाग़ में उस पलछिन में हमपें उधेल दी थी. मुझे लगा मैंने गँवा दिया उसे कहीं, पर मैं भूल गयी थी कि मैंने तो उसी दिन उस हँसी को इक सीपी में भरकर उसकी याद के साथ गूँथ रखा था - कि इत्तेफ़ाक़न कभी ज़ैद दिखे, तो उसकी याद के साथ वो हँसी भी बाहर आये - बहते बहते!
अलीबाग़ याद है? कल मैंने ज़ैद को देखा! हट् पागल, सपने में नहीं - तुम्हें पता तो है - "ख्वाब अधूरी नींद की नाजायज़ औलाद होती है" :) सचमुच, ये यादें और वो आँसू - एक बार बहने शुरू हुए तो थमने का नाम नहीं लेतें! वरना कहाँ समुंदर-सी आँखोंवाला ज़ैद और कहाँ कलवाले उस चारासाज़ की शहदिया नज़र! बचपन की क़िताबोंवाली (रूसी कहानियाँ, शायद) सुंदरता मन पर कईं सालों तक राज करती रही. नीली आँखे, सुनहरे बाल, गोरे गालों पे टमाटर जैसा लाल रंग (पता है, संस्कृत में गाल को 'कपोल' कहते हैं. मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा ये शब्द!) ये शरीर की सुंदरता के आदर्श मान होते थे नं? मुझे नीली आँखे बहुत पसंद थी. खास कर उन गोरे बुढऊ बाबाओंकी, जिनके बाल सफेद हो गये हों. आईनस्टीनी स्टाइल से! ऐसी आँखे केवल प्रेम की बौछार करतीं हैं, नहीं?
पर कल से मुझे सारी आँखे एक-जैसी सुंदर लगनें लगीं हैं. नीलमणि आँखों का ज़ैद हर रंग की आँख से झाँक-झाँककर अपनी वहीं हँसी बिखेरता है, जो उसने अलीबाग़ में उस पलछिन में हमपें उधेल दी थी. मुझे लगा मैंने गँवा दिया उसे कहीं, पर मैं भूल गयी थी कि मैंने तो उसी दिन उस हँसी को इक सीपी में भरकर उसकी याद के साथ गूँथ रखा था - कि इत्तेफ़ाक़न कभी ज़ैद दिखे, तो उसकी याद के साथ वो हँसी भी बाहर आये - बहते बहते!
4 Comments:
:)
Complete bouncer :(
isnt it a good thing that sweet memories never come alone?
in your case they bring with them those beautiful blue eyes and those moments of blissful laughter, sheer joy and heartfelt ever-flowing conversations.
very well written. :)
देवदास मधे तलतचे सुरेख गाणे आहे,
लागीरे ये कैसी अनबुझ प्यास मितवा नही आये
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