मितवा,पतझड़ शुरू हो गयी यहाँ पर.
कितने सुंदर पत्ते थे मेपल के...लाल, पीले, हरे, बैंगनी. फ़िर धीरे धीरे सारे भूरे बन गयें, और एक दिन सुबह उठकर देखा तो एक-एक पत्ता ज़मीन पर उतरा हुआ!
बड़े पेड़ों की शाखाओं में तो विरक्त जोगी की-सी गम्भीरता दिखाई भी देती है - पर कुछ नन्हें पौधे और अन-बनी उम्र के पेड़ हैं जिनकी शक्ल-ओ-सूरत मुझ से देखी नहीं जाती.
मन करता है उनके सारे पत्तों में गुब्बारों जैसी डोरियाँ लगाकर हर पौधे पे लटका दूँ! कितने प्यारे लगेंगे ना हवा में लहराते हुए...
मुझे भी एक ड़ोर चाहिये..यादों के कईं सुनहरे पत्ते खो चुकी हूँ आज तक!
कितने सुंदर पत्ते थे मेपल के...लाल, पीले, हरे, बैंगनी. फ़िर धीरे धीरे सारे भूरे बन गयें, और एक दिन सुबह उठकर देखा तो एक-एक पत्ता ज़मीन पर उतरा हुआ!
बड़े पेड़ों की शाखाओं में तो विरक्त जोगी की-सी गम्भीरता दिखाई भी देती है - पर कुछ नन्हें पौधे और अन-बनी उम्र के पेड़ हैं जिनकी शक्ल-ओ-सूरत मुझ से देखी नहीं जाती.
मन करता है उनके सारे पत्तों में गुब्बारों जैसी डोरियाँ लगाकर हर पौधे पे लटका दूँ! कितने प्यारे लगेंगे ना हवा में लहराते हुए...
मुझे भी एक ड़ोर चाहिये..यादों के कईं सुनहरे पत्ते खो चुकी हूँ आज तक!
6 Comments:
liked the way you ended this.
fall colours n autumn leaves usher in different emotions & memories.
do read this - my experience of watching fall colors for the 1st time -
http://asach-aapla.blogspot.com/2006/10/blog-post_16.html
and a beautiful poem in french that talks about those memories:
http://monsieurk.blogspot.com/2007/07/les-feuilles-mortes.html
aaj subah office aate hue nazar padi aaise hi ek ped pe...to muze laga ke original ped ka X-ray rakha hai...
...now how poetic is that..:)
how beautiful is that!! very....i dont know i just felt so nice reading that...
are tum kehan thi abhi tak...
aaj bhatakte hue tumare blog par pahuncha to bahut apna sa laga..
achha likhti ho...bahut achha...meine to abhi thoda sa hi padha...
tum to ek nayi "Krishnakali" likh sakti ho...
that is awesome dear..
Meenu
short but such an amazing piece of writing!
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