Wednesday, January 31, 2007

बावरी.

बावरे बैजू की कहानी सुनकर
इक बावरी ने अपना दिल पत्थर का बनाना चाहा
उसे कहाँ पता था -
कल की कहानियाँ आज सच नहीं होती!
तो हुआ बस यूँ कि -
नाज़ुक-दिल लोगों ने उसे पत्थरदिल समझा
मामला दिलचस्प था -
तो उसकी संगदिली मशहूर भी हुई
कुछ शीशें टूटें ज़रूर -
लोग जानते थे काँच-पत्थर का रिश्ता पुराना!
बड़ा हंगामा उठ्ठा -
ये भूलकर कि यहाँ काँच आ धमकी थी पत्थर पर.
लेकिन वह खुश थी -
काँच के टुकडों की चुभन उसे नहीं सहनी पड़ी
और तो और -
टूटे शीशों में उसने देखा हज़ार बार अपने दिल को
जो निखर रहा था -
हज़ार आसुओं से धुलते धुलते.

यह बात कुछ और है कि
कल की कहानियाँ आज सच नहीं होती
ना हि आज की कहानियाँ कल सच होंगी,

पर पत्थर पिघलते थे
और पिघलते हैं
कभी बाहर से... कभी अंदर से!