Wednesday, March 11, 2009

जोगिरा सा रा रा रा!!!

होली है!

महाराष्ट्र में होली पर रंग खेलने की परम्परा नहीं थी - हम बचपन में रंग खेलते थे होली के बाद पाँचवे दिन पर - ’रंगपंचमी’ कहलाता था वह दिन.
पर अब जब के गंगाजी का पानी पाँच साल पी ही लिये हैं, तो होली का ’होलिका माता’ के साथ साथ रंगों से भी नाता जुड़ ही गया है.

फिर अभी जमशेटपुर की एक बेसी दिलवाली लड़की के साथ दोस्ती हो गयी, तो उसने ’जोगिरा’ परम्परा के बारे में बताया. होली के दिन रंगो के साथ साथ लय में डूबे हुए शब्द भी उड़ाएँ जाते हुएँ देखे थे उसने. एक लय में कोई कुछ पंक्तियाँ बोलना शुरू करता - जब वो रुकता तो कोई और उसी लय में अपनी कुछ पंक्तियाँ बोलता..लय बदलनी है तो बोलो सा रा रा रा..जोगिरा सा रा रा रा! उत्तर-पूर्व भारत और नेपाल में यह परम्परा विकसित हुई शायद.
अब जहाँ कवन-कबित्त की बात हुई तहाँ हमारा मन ना अटके, यह कभी मुमकिन है?

जोगिरा के इस http://www.youtube.com/watch?v=9XGFWVwsap4 वीडियो को देख कर दिमाग में ढोल बजने लगा, और एक जोगिरा बाहर निकला:

जोगिरा सा रा रा रा..

हम आएँ हैं होरिया में मनरंग लैके
अमिया का खिलता जौबनरंग लैके
कान्हे की बांसुरि का अंग अंग लैके
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लौंगा-इलाची का बीडा ठो लैके
बिरहा में मीरा की पीड़ा को लैके
राधा कन्हाई की क्रीडा को लैके
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बरखा में बदली की छाया को लैके
रीसर्च की झूठी मोहमाया को लैके
मोर की लचकती-सी काया को लैके
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जोगिरा सा रा रारा..

बेली पर फूल है
काली पर शूल है
अपना उसूल है
तो और का चाहिये?
**

मैया का प्रेम है
ज़ंदगी एक गेम है
तेरा-मेरा सेम है
तो और का चाहिये?
**

हाथ में गुलाल है
पेट में हलाल है
टेंटुआँ सम्हाल है
तो और का चाहिये?

**
जोगिरा सा रा रा रा...