पुरानी बात है मितवा.
तुम हमें छोड़ चले थे.
किसी दूर देस जा रहे थे..दोगुना दुख था. दोगुने सवाल.
"तुम क्यों जा रहे हो?" और "तुम वहाँ क्यों जा रहे हो जहाँ मुझे जाना था?"
एक मन चाहता, तुम्हारे साथ मैं भी अपना घर छोड़कर चल दूँ.
पर निकलने से पहले तुम मुझे एक गुडिया सौंपकर चले गए.
उसके बाल सहलाकर तुमने कहा था मुझसे, "इसका खयाल रखना. बड़ी भोली है."
मुझे बड़ा ग़ुस्सा आया था.
वाह रे मुसीबत. एक तो तुम्हारा साथ छूटा जाता है, ऊपर से किसी तिकडम् गुडिया का खयाल रखो.
मैंने तुमसे तो कुछ नहीं कहा.
कहती भी तो क्या? कि गुड़िया से जलन होती है? हँसने लगते तुम , और शायद मेरा मन नारियल की शाख जैसा कट बिखरता.
कुछ दिन गुज़र गएँ उसके बाद. गुडिया को मैंने घर के सबसे अँधेरे कोने में बिठाकर रखा था.
एक दिन जालें झटक रही थी तो उसपर नज़र पड़ी.
मैंने उसे उठाकर अपने हाथों में लिया. उसके बालों में से हाथ फेरते हुए मैंने देखा, बड़ी सुंदर थी आँखे उसकी. लगता था उन आँखोंने कोई असुंदर वस्तु कभी देखी ही नहीं थी.
तुम्हारी याद में नहीं, मितवा - मैं अपनी चाह में गुडिया का खयाल रखूँगी.
***
तुम सामने थे तो खलबली उठती थी - पर निकल गए तो यूँ बिन बवंडर के.
रात भर रो-धोकर धमाधम शोर मचानेवाली रूदाली पौ फटते ही घूँघट ओढकर चुपके से पिछवाडे से चली गई जैसे.
तुम हमें छोड़ चले थे.
किसी दूर देस जा रहे थे..दोगुना दुख था. दोगुने सवाल.
"तुम क्यों जा रहे हो?" और "तुम वहाँ क्यों जा रहे हो जहाँ मुझे जाना था?"
एक मन चाहता, तुम्हारे साथ मैं भी अपना घर छोड़कर चल दूँ.
पर निकलने से पहले तुम मुझे एक गुडिया सौंपकर चले गए.
उसके बाल सहलाकर तुमने कहा था मुझसे, "इसका खयाल रखना. बड़ी भोली है."
मुझे बड़ा ग़ुस्सा आया था.
वाह रे मुसीबत. एक तो तुम्हारा साथ छूटा जाता है, ऊपर से किसी तिकडम् गुडिया का खयाल रखो.
मैंने तुमसे तो कुछ नहीं कहा.
कहती भी तो क्या? कि गुड़िया से जलन होती है? हँसने लगते तुम , और शायद मेरा मन नारियल की शाख जैसा कट बिखरता.
कुछ दिन गुज़र गएँ उसके बाद. गुडिया को मैंने घर के सबसे अँधेरे कोने में बिठाकर रखा था.
एक दिन जालें झटक रही थी तो उसपर नज़र पड़ी.
मैंने उसे उठाकर अपने हाथों में लिया. उसके बालों में से हाथ फेरते हुए मैंने देखा, बड़ी सुंदर थी आँखे उसकी. लगता था उन आँखोंने कोई असुंदर वस्तु कभी देखी ही नहीं थी.
तुम्हारी याद में नहीं, मितवा - मैं अपनी चाह में गुडिया का खयाल रखूँगी.
***
तुम सामने थे तो खलबली उठती थी - पर निकल गए तो यूँ बिन बवंडर के.
रात भर रो-धोकर धमाधम शोर मचानेवाली रूदाली पौ फटते ही घूँघट ओढकर चुपके से पिछवाडे से चली गई जैसे.